जिले के धरोहरों की सुध न जनप्रतिनिधियों को न ही अधिकारियों को, अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद में पहुँच रहे ये मिटने के कगार पर

पिछले हफ्ते 18 अप्रैल को ही पूरे विश्व में विश्व धरोहर दिवस के रुप में मनाया गया है। विश्व धरोहर दिवस का मुख्य उद्देश्य हमेशा से पूरे विश्व में मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूकता लाना है ताकि भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को अपने धरोहरों से जुड़े इतिहास की जानकारी हो सके।प्रारंभ में इसे विश्व स्मारक दिवस के रूप में मनाया जाता था, लेकिन यूनेस्को ने इसका नाम बदलकर विश्व विरासत दिवस या धरोहर दिवस कर दिया। भारत में वर्तमान में कुल 40 विश्व धरोहर हैं। जिसमें 7 प्राकृतिक 32 सांस्कृतिक और एक मिश्रित स्थल है। सबसे ज्यादा विश्व धरोहर महाराष्ट्र में है।

धरोहर दिवस को मनाया जाने का उद्देश्य यह कदापि नहीं रहा होगा कि सिर्फ विश्व धरोहर को संरक्षित किया जाए बल्कि कहीं ना कहीं जन जागरूकता पैदा करना होगा। लेकिन अफसोस कि यह दिन सिर्फ दस्तावेज रूप से ही संरक्षित हो पाया है।जिले के धरोहर अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में आज भी लगे हुए हैं। लेकिन उसके सुध लेने वाला कोई नहीं है। बेगूसराय जिले का इतिहास काफी पुरातन वक़्त से ही प्रचलित रहा है। यहां की धरोहर जैसे स्वतंत्रता प्रतीक गढ़पुरा का नमक सत्याग्रह स्थल,पाल कालीन स्तूप जयमंगलागढ़, नौलखा मंदिर एवं अन्य धरोहर प्रसिद्धि प्राप्त तो ज़रूर है, लेकिन समुचित देख रेख को मोहताज हैं।

नमक सत्याग्रह स्थल

21 अप्रैल 1930 को बिहार के मुंगेर वर्तमान में बेगूसराय के गढ़पुरा में डॉक्टर श्री कृष्ण सिंह के नेतृत्व में महात्मा गांधी के आवाहन पर नमक सत्याग्रह किया गया था। मुंगेर के कष्ट हरनी घाट से स्वतंत्रता सेनानी पदयात्रा करते हुए 20 अप्रैल को गढ़पुरा आए। इस पदयात्रा को रास्ते में ही रोक देने के लिए जगह-जगह पर पुलिस बल थे किसी तरह सत्याग्रह को विफल करने के उद्देश्य से। परंतु ऐसा हो ना सका, लेकिन अब दशकों बाद भी इस धरोहर को जिले वासियों और प्रशासन द्वारा उपेक्षित रखा गया है।

हरसाई स्तूप (जयमंगलागढ़)

गढ़पुरा में ही स्थित पाल कालीन हर साई स्तूप को लेकर इतिहासकारों का मानना है कि यह स्तूप भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 200 वर्षों बाद अर्थात दूसरी शताब्दी में बना है। हरसाई स्तूप शक्तिपीठ मां जयमंगलागढ़ के उत्तर पूर्व की दिशा में कावर झील पक्षी विहार के कछार में है। चार स्तूप समूह में है। कावर झील को रामसर स्थल में लेने के बावजूद इसकी देखरेख सही तरीके से नहीं हो पा रही है। शक्तिपीठ मंदिर के रूप में जगमंगलागढ़ है। जिस वजह से यहां पर पूजा-पाठ और लोगों का आना जाना लगा रहता है। थोड़ी रौनक मंदिर परिसर में जरूर नजर आती है, लेकिन पर्यटन स्थल के रूप में जिस तरह की स्थितियां रहनी चाहिए वह नहीं है।

नौलक्खा मंदिर

विष्णुपुर स्थित नौलखा मंदिर वर्ष 1980 से ही धार्मिक न्यास बोर्ड के अधीन है। इसके बावजूद यहां कुछ रख रखाव की व्यवस्था नहीं है। करोड़ों की संपदा होने के बावजूद इसके रखरखाव के प्रति सभी उदासीन है। भूकंप जलवायु समस्या की वजह से यहां की दीवारों में सीलन दीवार फटने की समस्या आ गई है, लेकिन इसकी मरम्मत अब तक नहीं पाई गई है।इसके जीर्णोद्धार का आश्वासन लंबे समय से मिलता आ रहा है लेकिन आज तक एक ईंट भी इसमें नहीं जोड़ी गई है।

राष्ट्रकवि का घर/दलान

बेगूसराय के सम्मानीय रामधारी सिंह दिनकर जी की जन्मस्थली सिमरिया है। उनकी उपलब्धियों की वजह से इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन इनकी जन्म स्थली सिमरिया अब तक साहित्यिक तीर्थ स्थल के रूप में विकसित नहीं हो पाई है। जिस जगह पर दिनकर जी पढ़ते थे, अपनी रचनाओं का निर्माण करते थे। वह दलान रखरखाव के अभाव में अत्यंत जर्जर हो चुका है। दिनकर जी के घर को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में विकसित करने की मांग राज्यसभा के शून्यकाल के दौरान राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा जी ने की थी, लेकिन इस पर अब तक कोई सकारात्मक कदम नहीं लिया गया है। वर्ष 1986 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने सिमरिया को आदर्श ग्राम बनाने की घोषणा की थी जो कि दस्तावेजी रूप से तो संभव हो गया है, लेकिन अब तक यहां उस तरह की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई है जो कि होनी चाहिए।

बेगूसराय लंबे वक्त धरोहरों का जिला रहा है। चाहे वह प्राकृतिक धरोहर या हो या मानव निर्मित धरोहर । लेकिन इसकी सुरक्षा व संरक्षण के प्रति ना तो जन प्रतिनिधि और ना ही सक्षम अधिकारी सजग नजर आते हैं। यह स्थल अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद करते आज भी नजर आ रहे हैं।

Copy

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copy