श्री राम के जन्मोत्सव रामनवमी पर जाने उनके जीवन से मिलने वाली शिक्षाएं, जिसे हम सभी को अपने जीवन मे पालन करना चाहिए

जब मर्यादा के साथ शक्ति होती है तभी प्रभु श्री राम का जन्म होता है। चैत नवरात्रि का आखरी दिन अर्थात नवमी को प्रत्येक हिंदू प्रभु श्री राम का जन्म उत्सव मनाता है। प्रभु के जन्म से पहले मां शक्ति की उपासना की जाती है। प्रभु श्री राम का नाम जितना छोटा है उतनी प्रभावी और विस्तृत इसकी व्याख्या है। जिसे समझने में उसे गृहीत करने में एक लंबा वक्त लगेगा।

पुराणों में कहा गया है “रमंते सर्वत्र इति रामा” अर्थात जो सभी जगह पर व्याप्त है, वही राम है। व्याकरण की दृष्टिकोण से राम का अर्थ है जो सुंदर है और दर्शनीय है। इसके अलावा भी अलग-अलग विद्वानों के नजरिए से प्रभु श्री राम का अर्थ विभिन्न है। लेकिन भक्तों की नज़रों से राम सिर्फ उनके राम हैं। उनके अपने राम, जो जीवन जीने की कला से लेकर व्यक्तित्व को मर्यादा पूर्ण बनाना सिखाते हैं। एक सामान्य व्यक्ति का जीवन जीते हुए जो हर रिश्ते को इस तरह निभाते हैं जो पूरे समाज के लिए उदाहरण बन जाता है। प्रभु श्रीराम के जीवन से प्रत्येक मनुष्य को मर्यादित जीवन जीने की हजारों शिक्षा मिलती है। जानते हैं ऐसे ही कुछ खास बातें जो हमें भी अपने जीवन में अपनानी चाहिए।

  1. प्रभु का जन्म अयोध्या में हुआ था। जो अपनी खुशहाली के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था। जब प्रभु राज़ संभाला तो उनकी प्रजा में और भी ज्यादा संपन्नता आ गई। क्योंकि श्री राम अब खुद से ज्यादा हमेशा अपनी प्रजा के सुख का सोचते थे। उनके लिए चिंतित रहते थे। इसलिए कहा जाता है कि राम राज्य से बेहतर कोई समय नहीं था और प्रभु जैसा कोई राजा नहीं था। और इससे हमें शिक्षा मिलती है कि हम सभी को खुद से ज्यादा दूसरों के बारे में पहले सोचना चाहिए।
  2. प्रभु श्रीराम अपने पिता दशरथ को भगवान तुल्य मानते थे। उनके वचन की पूर्ति करना अपना धर्म समझते थे। ठीक ऐसे ही प्रभु श्री राम के पुत्र लव कुश हुए। जैसा व्यवहार प्रभु ने अपने पिता के साथ रखा। वैसा ही सम्मान और प्रेम अपने पुत्रों से पाया। अर्थात किया गया व्यवहार ही हमें अपने जीवन में वापस से मिलता है।
  3. बाल्मीकि और तुलसीदास रचित रामायण में श्रीराम जितने गंभीर और कोमल व्यक्तित्व के बताए गए है, उतना ही शक्तिशाली योद्धा भी उन्हें साबित किया गया है। जिससे पता चलता है। अब प्रत्येक व्यक्ति को समय और परिस्थिति के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
  4. प्रभु राम के गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र थे। जिनके आश्रम में रहकर इन्होंने शिक्षा ग्रहण की बिल्कुल उसी तरह जिस तरीके से अन्य छात्र किया करते थे। इस तरह से स्पष्ट है कि जिस परंपरा में व्यक्ति रहता हो उसे पूरी कर्तव्य निष्ठा के साथ निभाना चाहिए।
  5. दोस्ती हो या दुश्मनी दोनों ही भागों में प्रभु ने सबके दिलों पर राज किया। इनकी दोस्ती सुग्रीव और विभीषण के साथ हुई तो उसे भी निभाया और जब बाली और रावण के साथ शत्रुता हुई तो उसे भी निभाया, लेकिन कहीं किसी पर अत्याचार होने नहीं दिया।
  6. कला का सम्मान करते हुए अपने शत्रु रावण के पास उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को भेजा था कि वह उसे राजनीतिक गुरु मानकर उनकी चतुर शासन क्षमता को सीख सके। अर्थात व्यक्ति को कहीं भी किसी व्यक्ति से कुछ अच्छा और प्रभावी सीखने को मिल रहा है। उसे जरूर सीखना चाहिए।
  7. मर्यादा पुरुषोत्तम राम ना सिर्फ एक पुत्र,भाई,दोस्त,राजा बल्कि एक आदर्श पति भी रहे हैं। माता जानकी के साथ एक आदर्श गृहस्थ जीवन को दिया है जिससे ना सिर्फ एक दूसरे के आत्मसम्मान बल्कि व्यक्तित्व की गरिमा का पालन करने की भी शिक्षा मिलती है।

प्रभु श्री राम का जीवन नीतिगत शिक्षाओं से परिपूर्ण है। जिसे प्रत्येक व्यक्ति को न सिर्फ सुन न समझना बल्कि उसे अपने जीवन मे शामिल भी करना चाहिए

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