100 वर्षों के स्वर्णिम इतिहास को दर्शाता”बिहार विधानसभा भवन”

बिहार में प्रजातंत्र की नींव काफी गहरी रही है। वैशाली के जनतंत्र की बात हो या पूरे भारत के गणतंत्र की ,बिहार की इसमें निर्णायक भूमिका रही है। स्वतंत्र राज्य के रूप में बिहार का गठन 1912 में हुआ। इसके बाद बिहार की राजव्यवस्था संवैधानिक प्रावधानों से निर्मित होते होते वर्तमान स्थिति में आ चुकी है। बिहार विधानसभा द्विसदनीय विधायिका का निचला सदन है और विघटनीय सदन है। जिसका कार्यकाल 5 वर्षों का है। वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा है एवं कुल सीट बिहार विधानसभा की 243 हैं।

वर्ष 2021 फरबरी में विधानसभा भवन ने पूरे किए 100 वर्ष

जहां विधानसभा के अंदर चल रही चर्चाओं पर बिहार के प्रत्येक जनता की नजर टिकी रहती है, वहीं यह भी जरूरी है कि जिस जगह पर चर्चाएं होती हैं, उसकी भी जानकारी प्रत्येक बिहार वासी को हो । आज जानते हैं विधानसभा भवन की खासियत जो नायाब और भव्य पिछले 100 वर्षों से लगातार खड़ी एक इतिहास को लिख रही है।

इतावली रेनेसां आर्किटेक्चर से तथा इंडो सारसेनिक शैली से प्रेरित होकर किया गया भवन निर्माण

पिछले वर्ष फरवरी माह में ही विधानसभा भवन का स्वर्णिम सौ वर्ष पूरा हो गया। इसके इतिहास की बात की जाए तो फरवरी 1921 में तत्कालीन राज्यपाल लॉर्ड सत्येंद्र प्रसाद सिंहा ने मौजूदा भवन का उद्घाटन किया था। तब से लेकर आज तक इस भवन में कई सारे विस्तार तो किए गए पर मूल संरचना को आज तक सहेज कर रखा गया है। विधानसभा के मुख्य भवन का डिजाइन वास्तुविद ए एम मिलवुड ने तैयार किया था। इतावली रेनेसा आर्किटेक्चर में बनी यह इमारत खूबसूरती की मिसाल है। समानुपातिक गणितीय संतुलन के साथ सादगी और भव्यता इसमें है। यह भवन इंडो सारसेनिक शैली से भी बनी है। अंग्रेजों के जमाने का यह भवन आजाद भारत में बिहार के लिए लोकतंत्र की मंदिर सा है।

जमींदारी प्रथा उन्मूलन से लेकर शराब बंदी तक का विधेयक इसी भवन से पारित किया गया

बिहार विधानसभा के भवन में जहां भारत की आजादी देखी, वहीं भारत विभाजन की त्रासदी भी देखी है। यहां कई सारे विधायक भी पास हुए हैं। वर्ष 2000 में बिहार के आखिरी विभाजन जो कि झारखंड के साथ हुआ,इसका भी विधायक यहीं से पारित हुआ। बिहार विधानसभा देश का पहला ऐसा सदन है जहां सबसे पहले भूमि सुधार विधेयक पास हुआ।यहीं पर संविधान संशोधन करके जमीदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ। शराबबंदी का विधायक भी इसी भवन से पारित हुआ था।भारत का पहला चुनाव 1952 में हुआ था जो कि आजादी के बाद हुआ था। पहली बार जब बिहार में विधान सभा की बैठक हुई थी तो कुल 331 सदस्य थे। फिर बिहार का वर्ष 2000 में झारखंड से बटवारा हो गया। इसके बाद बिहार में अब 243 सदस्य विधान सभा में बचे हैं।

100 वर्ष पूरे होने पर आयोजित कार्यक्रम का हिस्सा बने थे राष्ट्रपति कोविंद

विधानसभा परिसर में 3 हॉल और 12 कमरे हैं। विधानसभा को सदन का कार्यवाही हॉल अर्ध गोलाकार बना हुआ है। इस भवन के आंतरिक संरचना 60 फीट लंबी और 50 फीट चौड़ी है तथा अगले हिस्से की लंबाई 230 फिट है। पिछले वर्ष बिहार विधानसभा भवन ने अपनी गौरव के स्वर्णिम 100 वर्ष पूरे किए। इस पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भारत आए और कार्यक्रम का हिस्सा भी बने थे।

बिहार की युवा पीढ़ी को लोकतांत्रिक मूल्यों के इस नायाब धरोहर की जानकारी रखना काफी जरूरी है ताकि उन्हें बिहार के इंफ्रास्ट्रक्चर पर भरोसा भी कायम है और प्रेरणा भी मिलती रहे।

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